स्नेहीजन

Monday, August 23, 2010

वि दिन हम नि हुंल // 'गिर्दा'

ततुक नि लगा उदेख,घुनन मुनई नि टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन कठुली रात ब्याली
पौ फाटला,कौ कदालो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन चोर नि फलाल
कै कै जोर नि चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन नान ठुल नि रौल
जै दिन तयार-म्यार नि होल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
चाहे हम नि ल्याई सकूँ
चाहे तुम नि ल्ये सकू
मगर क्वे न क्वे तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में।
वि दिन हम नि हुंल लेकिन
हमले उसै दिन हुंल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में

2 comments:

VICHAAR SHOONYA said...

गिरदा बारम मेकें ज्यादा पत्त नि छू. मेल एक बार u tubeम गिरदा और नरेंदर सिंह नेगी ज्यूक जुगलबंदी सुनी. उ में गिरदा आवाज मिकें बड़ी जोरदार लागि. तभो बटी पत्त लागो की कोई गिरदा ले छीं. यो आज उनरी पैल कविता छू जो मील पढ़ी. यो लिजी तुमार भोत धन्यवाद. और गिरदा कें मेरी दिल बटी श्रद्धांजलि.

पी.एस .भाकुनी said...

...
जै दिन चोर नि फलाल
कै कै जोर नि चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
sarhak bloging .