स्नेहीजन

Thursday, March 26, 2009

'चरित्र..' /तसलीमा नसरीन (कुमांउनी में )

तु चेलि छै
य भली कै याद राखिये ।
तु जब घरकि देली पार करली
लोग त्वेस तिरछि नज़रले देखाल ।
तु जब गली बटी गुजरली ,
लोग त्वेस गालि द्याल,सिट्टी बजाल।
तु जब गली पार करि बेर
मुख्य सड़क में पुजली,
उन त्वे 'चरित्रहीन' कौला ।
अगर तु निर्जीव छै त
लौटि पड़्ली, नति
जसी जांछी ,जानी रौली...!

Thursday, March 19, 2009

मुक्तिगीत (गढ़वाली )/दुर्बी

अपणा आँखा ना झुकावा
मुट्ठ बोटी कि नि रावा
अपणा सुप्न्यौ तैं सजावा
भैजि आवा ,भुलि आवा
मनखी जु नि बण सकिनि
देखा बक्या बण्या छिन
यूँ का देवतों तैं भगावा
भैजि आवा भुलि आवा
देवी देवतों कु सवाल
अर जात्युं कु मायाजाल
मनखी जून तैं बचावा
भैजि आवा ,भुलि आवा
नई योजना सरकारी
देखा रुपयों कि मारामारी
बस सुणेंदु खावा-खावा
भैजि आवा भुलि आवा.....!

Sunday, March 1, 2009

ख़बर बासि कस्यें भै..?

आब या त ख़बर समाज कैं उद्वेलित करनै छापनी या प्रसारित हुनि बंद ह्वै गैछ ,या रोज़ सुबह टी.वी.अख़बार वाल 'आज की ताज़ा ख़बर'/'ब्रेकिंग न्यूज़' कै बेर हमकैं ठगि जानान।किलै कि ख़बर त बासि ह्वै चुकि गैछ। हमर रोज़ टी.वी.देखना /अख़बार पढ़नाले या रोज़ छापना /प्रसारित हुना कि मज़बुरीले ,खबरकि मारक क्षमता उविको डंक समाप्त करि हालि छि । अगर महिलाऊँ सन्दर्भ में बात करी जौ त आज खबरिया चैनलूं और अखबारून में महिला केवल छेड़ -छाड़ ,उत्पीड़न ,लात्कार जसि नसनीखेज़ ,चटपटी , मसालेदार ,खबरुन कि उत्पादक ?...या ख़बर उत्पीड़न करण्या लोगुन की संख्या बलadvertisement करन चां छि।
ख़बर खिन इसि दशा मेंभीष्ट छ कि उ आफनी भूमिकाक जीर्णोद्धार करौ। उवीकि सार्थकता अखबारक पन्ना भरना या टी आर पी का खेल में नहा थीं बल्कि समाजी आवश्यकता का हिसाबले उविले आफ्ना स्वरुप में परिवर्तन करन चैं छ।

बोल...!/फ़ैज़ (कुमाउनी में )

बोल...!
कि त्यार होंट आजाद छन ,
बोल ज़बान आन्जि ले तेरी छ।
तेरो सशक्त शरीर तेरवे ,
बोल कि जान आन्जि ले तेरी
बोल ...!
कि लुहारै कि दुकान में ,
तेज़ छन अंगार ,लाल लौह
खुलि ग्यान बंद कड़ी मुख ,
फैलि ग्यो दामन हर जन्जिरौ
बोल यो थोड़ै बखत भौत ,
शरीर ज़बानै मौत हैं पैले
बोल कि सत्य जीवित आन्जि ले
बोल जिलै कूण कैले।