स्नेहीजन

Monday, August 22, 2011

गिर्दा' और 'फैज़'

उत्तराखंड के जनकवि गिर्दा की पहली पुण्यतिथि पर.
जनपक्षधर कलम के दो महारथी 'गिर्दा' और 'फैज़',२२ अगस्त, उत्तराखंड के जनमानस को अपने जनगीतों से झंकृत कर जगाने वाले क्रांतिकारी जनकवि 'गिर्दा' की पहली पुण्यतिथि है और यह  साल २०११  उर्दू के जनवादी शायर फैज़ अहमद 'फैज़' की जन्मशती भी है.
इन दोनों रचनाकारों के बीच का साम्य केवल इतना ही नहीं है, फैज़ जहां उर्दू की रूमानियत भरी शायरी के 'इश्क-मुश्क,वफ़ा-ज़फ़ा,शराब -शबाब,लबो-रुखसारो-ज़ुल्फ़,की रवायत' से आगे निकलकर 'ग़म-ए-दुनिया,ग़म ए रोज़गार को ग़म ए यार, यानी प्रेम के व्यक्तिपरक दुःख से ऊपर रखते हुए शायरी में एक नए युग की शुरुआत करते हैं, उनकी शायरी में सुकोमल प्रेम के साथ शोषितों,ग़रीबों का दुःख  है और  संपत्ति और संसाधनों पर कुंडली मारे हुए पूंजीपतियों के प्रति आक्रोश भी. दुनिया भर में 'फैज़' का क़लाम अद्भुत सामंजस्य के साथ 'प्रेम और क्रान्ति' की ख़ुशबू फैला रहा है..उनकी शायरी इस तथ्य को उद्घाटित  करती है के  वास्तव में प्रेम की सुकोमल अनुभूति ही क्रांति के दुष्कर मार्ग को प्रशस्त करती है.
वहीँ 'गिर्दा'  कुमाउनी कविता के ऐसे हस्ताक्षर हैं जिन्होंने आंचलिक भाषा के काव्य   में जनसरोकारों की पैरवी का सूत्रपात किया,कुमाउनी कविता को नए उपमेय-उपमान और नयी विषयवस्तु दी. उनके गीत क्षेत्र की जनता की आवाज़ बन गए, उत्तराखंड पृथक राज्य आन्दोलन में इन जनगीतों ने प्राणवायु का काम किया. इस के अलावा 'फैज़' और 'गिर्दा' दोनों ही साहित्य के माध्यम से जनक्रांति के पैरोकार और 'जनता के उस राज' की स्थापना के स्वप्नदृष्टा रहे हैं जिसमे संसाधनों पर सभी का बराबर का हक़ हो. पूंजीपति सर्वहारा का, बहुसंख्यक अल्पसंख्यक का, या सवर्ण दलित का हर भेद ख़त्म हो सके, हर शोषण स्वाहा हो जाए.
इन दोनों रचनाकरों के सरोकारों की दो प्रतिनिधि रचनाएँ हैं..
*वि दिन हम नि हुंल // 'गिर्दा'
ततुक नि लगा उदेख,घुनन मुनई नि टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन कठुली रात ब्याली
पौ फाटला,कौ कदालो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन चोर नि फलाल
कै कै जोर नि चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन नान ठुल नि रौल
जै दिन तयार-म्यार नि होल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
चाहे हम नि ल्याई सकूँ
चाहे तुम नि ल्ये सकू
मगर क्वे न क्वे तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में।
वि दिन हम नि हुंल लेकिन
हमले उसै दिन हुंल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
_______________________________
*हम  देखेंगे // फैज़ अहमद 'फैज़'
हम  देखेंगे
लाज़िम  है  के  हम  भी  देखेंगे
वो  दिन  के  जिस  का  वादा  है
जो  लौह  -ए-अजल  पे  लिखा  है
हम  देखेंगे

जब  ज़ुल्म -ओ -सितम  के  कोह -ए -गरां
रुई  की  तरह  उड़  जायेंगे
हम  महकूमों  के  पौन  तले
यह  धरती  धड  धड  धड्केगी
और  एहल -ए -हुकुम  के  सर  ऊपर
जब  बिजली  कड़  कड़  कड़केगी
हम  देखेंगे

जब  अर्ज़ -ए -खुदा  के  काबे  से
सब  बुत  उठवाए  जायेंगे
हम  अहल -ए -सफा  मरदूद -ए -हरम
मसनद  पे  बिठाये  जायेंगे
सब  ताज  उछाले  जायेंगे
सब  तख़्त  गिराए  जायेंगे

बस  नाम  रहेगा  अल्लाह  का
जो  ग़ायब  भी  है  हाज़िर  भी
जो  नज़र  भी  है  मंज़र  भी
उठेगा  अनलहक  का  नारा
जो  मैं  भी  हूँ  और  तुम  भी  हो
और  राज  करेगी  खलक -ए -खुदा
जो  मैं  भी हूँ  और  तुम  भी  हो

हम  देखेंगे
लाज़िम  है  के  हम  भी  देखेंगे

Friday, May 27, 2011

सबहै खतरनाक 'पाश' ( कुमाउनी )

मेहनतैकि   लूट सबहै खतरनाक नि हुनि.
पुलिसैकि  मार सबहै खतरनाक नि हुनि .
 गद्दारी लोभैकि मुट्ठि  सबहै खतरनाक नि हुनि.
बसि बस्ये पकड़ीन  ख़राब त छ.
स्यांरी भेर चुप में जकड़ीन ख़राब त छ.
पर  सबहै खतरनाक न्हा थिन .

सबहै खतरनाक हुंछ मुर्दा शांतिले भरी झान  .
तडपै नि हुन ,सब थै ल्हिन ,
घर है निकलन काम पर,

काम हैं फिरि घरी झान.
सबहै खतरनाक हुंछ,
हमर स्वीनुं क  मरि  झान.

सबहै खतरनाक उ आँख हुंछि ,
जो सब देखि भेर ले ह्यूं जसि जामि रूंछि .
जै कि   नज़र दुनियास,
प्रेमले चुमन भुलि झांछि .
जो चीजुन हैं उठनी अन्धापनै भाप में लोटि  झांछि.
जो रोजा रोजोक क्रम पी भेर ,
एक  लक्ष्यहीन  दुह्रावक उलटफेर में हरै झांछि.

सबहै खतरनाक उ हाथघड़ी छ
जो कलाई में चलति हुई लै 
हमरि नज़र में रुकी रूंछि 

सबहै खतरनाक उ दिशा हुं छि
जै में आत्माक  सूरज डुबि जांछ.

और वीक  मुर्दा घामक टुकुड़ ,
तुमार शरीराक पूरब में बुड़ि जांछ.

अवतार सिंह पाश 

( कुमाउनी अनुवाद :दीपक तिरुवा  )
 

Friday, August 27, 2010

ट्विंकल-ट्विंकल little स्टार ( कुमाउनी में )

Twinkle-twinkle,
little star.
How i wonder
what you are?
up above
the world so high
like a diamond
in the sky
जगमग-जगमग,
नानु तारो
आब कि बतुं
कतु न्यारो?
जग है उच्च
गगन में दूर,
चमकी रयो्
एक कोहिनूर
(दीपक तिरुवा)

Monday, August 23, 2010

वि दिन हम नि हुंल // 'गिर्दा'

ततुक नि लगा उदेख,घुनन मुनई नि टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन कठुली रात ब्याली
पौ फाटला,कौ कदालो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन चोर नि फलाल
कै कै जोर नि चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन नान ठुल नि रौल
जै दिन तयार-म्यार नि होल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
चाहे हम नि ल्याई सकूँ
चाहे तुम नि ल्ये सकू
मगर क्वे न क्वे तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में।
वि दिन हम नि हुंल लेकिन
हमले उसै दिन हुंल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में

Wednesday, March 10, 2010

पहाड़ियौ उठ ! (कुमांउनी कविता )

(हिंदी तर्जुमे के साथ )
पहाड़ियौ
उठ !
तुम नि जाणना कि ह्वै रौ
तुम पथरीला गाड़ - खेतून में
'सोना' उगुने कोशिश कर छा
और 'लोहा' समझि भेर
सरहद पर भेज छा
आफन बालक....
तुम नि जाणना
बालक लोहा का बनिना का नि हुना ....
उन्स सरहद पर 'लोहा' खान् पड़लो...!
उन शहीद नै बल्कि
राजनीती का हातून
पिटिया 'मोहरा ' ह्वाल ....
और भोल सरकारी दफ्तारून में
तुमरी बद हवाश ब्वारीन
लोग कै नज़रले देखाल ....?
तुम नि जाणना ...
ये कारन पहाड़ियौ उठ !
आफन पथरीला खेतून में
आब 'सोना ' नै बल्कि 'लोहा' उगा !
(
दीपक तिरुवा)

पहाडियों उठो!

तुम नहीं जानते
क्या हुआ है?
तुम पथरीले खेतों में
सोना उगाने की
कोशिश करते हो..
और लोहा समझ कर
सरहद पर भेजते हो
अपने बच्चे....
तुम नहीं जानते
बच्चे लोहे के नहीं होते...
वे सरहद पर लोहा खाएँगे।
वे शहीद नहीं
सियासत के हाथों पिटे हुए
मोहरे होंगे...
और कल सरकारी दफ्तरों में
तुम्हारी बदहवाश बहुएँ
किस 'एंगल और फ्रेम' से
देखी जायेंगी ?
तुम नहीं जानते!
इसलिए उठो !
अपने पथरीले खेतों में
अब सोना नहीं...
लोहा उगाओ..!

(published)





Thursday, March 26, 2009

'चरित्र..' /तसलीमा नसरीन (कुमांउनी में )

तु चेलि छै
य भली कै याद राखिये ।
तु जब घरकि देली पार करली
लोग त्वेस तिरछि नज़रले देखाल ।
तु जब गली बटी गुजरली ,
लोग त्वेस गालि द्याल,सिट्टी बजाल।
तु जब गली पार करि बेर
मुख्य सड़क में पुजली,
उन त्वे 'चरित्रहीन' कौला ।
अगर तु निर्जीव छै त
लौटि पड़्ली, नति
जसी जांछी ,जानी रौली...!

Thursday, March 19, 2009

मुक्तिगीत (गढ़वाली )/दुर्बी

अपणा आँखा ना झुकावा
मुट्ठ बोटी कि नि रावा
अपणा सुप्न्यौ तैं सजावा
भैजि आवा ,भुलि आवा
मनखी जु नि बण सकिनि
देखा बक्या बण्या छिन
यूँ का देवतों तैं भगावा
भैजि आवा भुलि आवा
देवी देवतों कु सवाल
अर जात्युं कु मायाजाल
मनखी जून तैं बचावा
भैजि आवा ,भुलि आवा
नई योजना सरकारी
देखा रुपयों कि मारामारी
बस सुणेंदु खावा-खावा
भैजि आवा भुलि आवा.....!