Twinkle-twinkle,
little star.
How i wonder
what you are?
up above
the world so high
like a diamond
in the sky।
जगमग-जगमग,
नानु तारो।
आब कि बतुं
कतु न्यारो?
जग है उच्च
गगन में दूर,
चमकी रयो्
एक कोहिनूर ।
(दीपक तिरुवा)
स्नेहीजन
Friday, August 27, 2010
Monday, August 23, 2010
वि दिन हम नि हुंल // 'गिर्दा'
ततुक नि लगा उदेख,घुनन मुनई नि टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन कठुली रात ब्याली
पौ फाटला,कौ कदालो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन चोर नि फलाल
कै कै जोर नि चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन नान ठुल नि रौल
जै दिन तयार-म्यार नि होल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
चाहे हम नि ल्याई सकूँ
चाहे तुम नि ल्ये सकू
मगर क्वे न क्वे तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में।
वि दिन हम नि हुंल लेकिन
हमले उसै दिन हुंल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन कठुली रात ब्याली
पौ फाटला,कौ कदालो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन चोर नि फलाल
कै कै जोर नि चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन नान ठुल नि रौल
जै दिन तयार-म्यार नि होल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
चाहे हम नि ल्याई सकूँ
चाहे तुम नि ल्ये सकू
मगर क्वे न क्वे तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में।
वि दिन हम नि हुंल लेकिन
हमले उसै दिन हुंल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
Wednesday, March 10, 2010
पहाड़ियौ उठ ! (कुमांउनी कविता )
(हिंदी तर्जुमे के साथ )
पहाड़ियौ उठ !
तुम नि जाणना कि ह्वै रौ ।
तुम पथरीला गाड़ - खेतून में
'सोना' उगुने कोशिश कर छा
और 'लोहा' समझि भेर
सरहद पर भेज छा
आफन बालक....
तुम नि जाणना
बालक लोहा का बनिना का नि हुना ....
उन्स त सरहद पर 'लोहा' खान् पड़लो...!
उन शहीद नै बल्कि
राजनीती का हातून
पिटिया 'मोहरा ' ह्वाल ....
और भोल सरकारी दफ्तारून में
तुमरी बद हवाश ब्वारीन
लोग कै नज़रले देखाल ....?
तुम नि जाणना ...
ये कारन पहाड़ियौ उठ !
आफन पथरीला खेतून में
आब 'सोना ' नै बल्कि 'लोहा' उगा !
(दीपक तिरुवा)
पहाडियों उठो!
पहाड़ियौ उठ !
तुम नि जाणना कि ह्वै रौ ।
तुम पथरीला गाड़ - खेतून में
'सोना' उगुने कोशिश कर छा
और 'लोहा' समझि भेर
सरहद पर भेज छा
आफन बालक....
तुम नि जाणना
बालक लोहा का बनिना का नि हुना ....
उन्स त सरहद पर 'लोहा' खान् पड़लो...!
उन शहीद नै बल्कि
राजनीती का हातून
पिटिया 'मोहरा ' ह्वाल ....
और भोल सरकारी दफ्तारून में
तुमरी बद हवाश ब्वारीन
लोग कै नज़रले देखाल ....?
तुम नि जाणना ...
ये कारन पहाड़ियौ उठ !
आफन पथरीला खेतून में
आब 'सोना ' नै बल्कि 'लोहा' उगा !
(दीपक तिरुवा)
पहाडियों उठो!
तुम नहीं जानते
क्या हुआ है?
तुम पथरीले खेतों में
सोना उगाने की
कोशिश करते हो..।
और लोहा समझ कर
सरहद पर भेजते हो
अपने बच्चे....
तुम नहीं जानते
बच्चे लोहे के नहीं होते...
वे सरहद पर लोहा खाएँगे।
वे शहीद नहीं
सियासत के हाथों पिटे हुए
मोहरे होंगे...
और कल सरकारी दफ्तरों में
तुम्हारी बदहवाश बहुएँ
किस 'एंगल और फ्रेम' से
देखी जायेंगी ?
तुम नहीं जानते!
इसलिए उठो !
अपने पथरीले खेतों में
अब सोना नहीं...
लोहा उगाओ..!
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