स्नेहीजन

Thursday, March 19, 2009

मुक्तिगीत (गढ़वाली )/दुर्बी

अपणा आँखा ना झुकावा
मुट्ठ बोटी कि नि रावा
अपणा सुप्न्यौ तैं सजावा
भैजि आवा ,भुलि आवा
मनखी जु नि बण सकिनि
देखा बक्या बण्या छिन
यूँ का देवतों तैं भगावा
भैजि आवा भुलि आवा
देवी देवतों कु सवाल
अर जात्युं कु मायाजाल
मनखी जून तैं बचावा
भैजि आवा ,भुलि आवा
नई योजना सरकारी
देखा रुपयों कि मारामारी
बस सुणेंदु खावा-खावा
भैजि आवा भुलि आवा.....!

1 comment:

Anonymous said...

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